Friday, August 12, 2011

अंबेडकर ने डाली थी दलितों के आजादी की नींव

आम तौर पर आजादी की बात करते समय लोग दलितों की आजादी की बात भूल जाते हैं. लेकिन आज जब हम फिर से आजादी का जश्न मनाने जा रहे हैं तो इस बार दलितों की आजादी की बात भी होगी. यह एक ऐसा तबका था, जो दोहरी गुलामी का शिकार था. जिसे आजादी दिलाया डा. अंबेडकर ने. 12 नवंबर 1930 को गांधी जी के नागरिक अवज्ञा आंदोलन से घबराई अंग्रेज सरकार ने लंदन में गोलमेज सम्मेलन बुलाया. लेकिन इस सम्मेलन में शामिल एक युवा बैरिस्टर ने गांधी जी को पूरे भारत का नेता मानने से इंकार कर दिया. उनका नाम था डॉ. बी.आर. अंबेडकर. उन्होंने साफ कहा कि कांग्रेस के ज्यादातर नेता भी ऊंच-नीच में विश्वास रखते हैं. वे दलितों को संवैधानिक प्रक्रिया में भाग नहीं लेने देंगे इसलिए जरूरी कि ऐसे पृथक निर्वाचक मंडल बनाए जाएं जहां दलित उम्मीदवार हों और जिन्हें सिर्फ दलित चुनें.

16 अगस्त 1942 को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री मेकडॉनल्ड ने कम्युनल अवार्ड यानी सांप्रदायिक पंचाट की घोषणा कर दी. इसके तहत दलितों को हिंदुओं से अलग मानकर अलग निर्वाचन मंडल का प्रावधान किया गया था. गांधी जी तब पूना की जेल में थे. ये घोषणा उन्हें दलितों को हिंदुओं से अलग करने का सरकारी षड्यंत्र लगा. 20 सितंबर 1932 को गांधी जी ने कम्युनल अवॉर्ड के खिलाफ आमरण अनशन शुरू कर दिया. देश भर में हाहाकार मच गया. डॉ. अंबेडकर से गांधी जी की जान बचाने की गुहार लगाई गई. हर तरफ से पड़ रहे दबाव को देखते हुए डॉ. अंबेडकर समझौते के लिए राजी हुए. लेकिन शर्त थी कि दलितों को हर स्तर पर आरक्षण दिया जाए. गांधी जी मान गए. 26 दिसंबर को उन्होंने अनशन तोड़ दिया. इस पूना पैक्ट ने दलितों की सूरत बदलने में क्रांतिकारी भूमिका अदा की.

डॉ. अंबेडकर से पहले 9वीं सदी के आखिरी दौर में महाराष्ट्र में ज्योतिबा फुले जैसे समाजसुधारक ‘गुलामगीरी’ जैसी किताब लिखकर ब्राह्मणवादी कर्मकांडों पर कड़ा प्रहार कर चुके थे. उधर, दक्षिण में नारायाणा गुरु और पेरियार भी वर्णव्यवस्था के खिलाफ बिगुल बजा रहे थे. डॉ. अंबेडकर के महत्व को समझते हुए उन्हें देश का संविधान लिखने की जिम्मेदारी सौंपी गई. वे देश के पहले कानून मंत्री भी बनाए गए. डॉ. अंबेडकर के विचार, आजादी के हर बढ़ते साल के साथ ज्यादा प्रासंगिक होते गए हैं. ये उनके मिशन का ही नतीजा है कि जिस उत्तर प्रदेश में दलितों को ऊंची जाति वालों के सामने बैठने की इजाजत नहीं थी, वहां दलित समाज से ताल्लुक रखने वाली मायावती मुख्यमंत्री बन कर उसी समाज पर राज कर रही हैं.
साभार
www.dalitmat.com
india's 1st Hindi news Portal on dalit

1 comment: