कई दिनों से फिल्म आरक्षण पर 'मत' पूछा जा रहा था. मैने पहली प्रतिक्रिया अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष पी.एल पुनिया द्वारा फिल्म देखने के बाद दिए बयान के आधार पर दी थी. लेकिन अब खुद फिल्म देखने के बाद कह सकता हूं कि फिल्म पर बवाल बेवजह है. फिल्म में कहीं भी दलितों को कमजोर और लाचार नहीं दिखाया गया है. बल्कि वह सजग है. अपने अधिकारों को लेकर अपने स्वाभिमान को लेकर. वह मेधावी है, टॉपर है. मुंहतोड़ जवाब देना जानता है. फिल्म में जब-जब उस पर उंगली उठी है, उसने जवाब दिया है.
'हंस चुगेगा दाना' // 'आप लोग लात की भाषा समझते हैं' // और सैफ द्वारा दी गई मेहनत की जिस परिभाषा पर बवाल मचा है और उसको फिल्म से निकालने की बात हो रही है, मेरे 'मत' से उसको फिल्म से हटाने की कोई जरूरत नहीं है. आप खुद से पूछिए, क्या आपके-हमारे पीठ पीछे ऐसी बातें नहीं कही जाती. फिर सामने से उसका सामना करने में कैसा डर? बल्कि मैं तो कहूंगा कि जिसे कहना है सामने से आकर कहे, ताकि हम उसे जवाब दे सकें. हमने जवाब दिया है- हम दे रहे हैं जवाब. बल्कि फिल्म में यह सच दिखाया गया है कि अपने दम पर दलितों के आगे बढ़ने से और दलित हितैषियों से तथाकथित सवर्ण तबके को कैसे मिर्च लगती है और वह एक हो जाता है.
फिल्म में एक सवर्ण लड़की (दीपीका) को दलित लड़के (सैफ) के साथ प्रेम करते दिखाया जाता है लेकिन लड़की के मां-बाप इस पर कोई ऐतराज नहीं करते. कल तक फिल्म में दलित को 'कचरा' (लगान) दिखाया जाता था. लेकिन आक्रोश (अजय देवगन) और आरक्षण (सैफ) जैसी फिल्मों में वह मुख्य भूमिका में आ रहा है. मेरे 'मत' से यह स्थिति बेहतर है.
बात होनी जरूरी है. समस्या भूल जाने से या उसे छिपाने से वह खत्म नहीं होती. उसका सामना करना होता है. हमें सामना करना होगा.
जहां तक दलितों और पिछड़ों को मिलने वाले आरक्षण की बात है, मैं शिक्षा सहित तमाम क्षेत्रों में आरक्षण का घोर समर्थक हूं. और तब तक रहूंगा जब तक एक ब्राह्मण और क्षत्रिय कहा जाने वाला समाज अपनी बेटी का रिश्ता लेकर दलित के घर नहीं आता. तब तक रहूंगा, जब तक अगड़ों और पिछड़ों की यह व्यवस्था है. जब तक देश में कहीं भी एक भी दलित पर अत्याचार की खबर आती रहेगी, मैं आरक्षण का समर्थन करता रहूंगा.
जहां तक प्रकाश झा की बात है, ट्विटर पर उनका दलित विरोधी ट्विट सामने आया था. मुझे उससे घोर ऐतराज है. मैं विरोध करता हूं. हां, झा को धन्यवाद, जिसने हम सबको एक बार फिर और मजबूती से साथ लाकर खड़ा कर दिया. इस एकता को कायम रखने की जरूरत है.
अशोक दास
संपादक
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