Tuesday, August 9, 2011

ऊंचाई छूती सरोज की 'कल्पना'

बात इसी साल जनवरी महीने की है. दलित उद्यमियों द्वारा आयोजित एक पार्टी में काले सूट पहने उद्यमियों से घिरे चंद्रभान प्रसाद ने पूछा, ‘अगले साल कौन हेलीकॉप्टर खरीदने जा रहा है?’ भीड़ में से जिस शख़्स को आगे किया गया उसने अपना हाथ ऊपर उठा रखा था और वह एक काली चमकीली साड़ी पहने थी तथा उनके गले में रूबी और हीरा जडि़त एक भारी हार था. वह हाथ कल्पना सरोज का था. वहां मौजूद ज्यादातर लोग इस बात से सहमत थे कि कमानी ट्यूब्स की अध्यक्ष कल्पना सरोज वहां उपस्थित सबसे सफल उद्यमी हैं.
बाद में एक बातचीत में सुश्री सरोज ने बताया कि उनकी कुल संपत्ति पांच बिलियन रुपए (लगभग 112 मिलियन डॉलर) की है. दलित बिजनेस चैंबर और योजना आयोग के बीच सोमवार को होनेवाली बैठक के पहले यह सम्मेलन आयोजित किया गया था. वर्ण-व्यवस्था के सबसे निचले स्तर में आनेवाले समुदाय के लोगों ने कहा कि उदार आर्थिक नीति से उन्हें लाभ मिला है. उन्होंने कहा कि इसके जरिए भारत के समाजवादी युग तथा इसकी सरकारी नौकरियों की तुलना में उनकी प्रतिभाओं तथा योग्यताओं को कहीं अधिक अवसर प्राप्त हुए हैं. शायद सुश्री सरोज की तरह इस आंदोलन का कोई और प्रतीक नहीं हो सकता है. उनके पति समीर सरोज का कहना है कि ‘मुख्य बात यह जानने की है कि यह महिला नौवीं पास हैं और प्रतिदिन दो रुपए कमाया करती थीं.’ श्री समीर पहले निर्माण कार्यों के लिए बालू की आपूर्ति करनेवाली कंपनी चलाया करते थे, और अब वे अपनी पत्नी के लिए काम करते हैं.
सुश्री सरोज ने 1980 के दशक के मध्य में महाराष्ट्र के अकोला से मुंबई आने की एक उल्लेखनीय यात्रा का वर्णन किया. यह भारत द्वारा अपनी अर्थ-व्यवस्था को उदार बनाने के दौर से शायद पांच साल पहले की बात है. अकोला में, उनकी शादी 12 साल की उम्र में कर दी गयी और 14 साल की उम्र में उन्हें स्कूल छोड़ना पड़ा. उनकी शादी टिक नहीं पायी. उनके पिता के पुलिस अधिकारी के पद से निलंबन के बाद उन्हें किशोर वय में ही काम करना पड़ा. मुंबई में, दर्जी का काम करके वे रोजाना दो रुपए (लगभग .05 अमेरिकी सेंट) कमाया करती थीं. उनकी कमाई बढ़ने पर पर उन्होंने अपनी सुविधा के लिए सिलाई मशीन ले ली. बाद में, बैंक ऋण लेकर वे एक फर्नीचर की दूकान चलाने लगीं. जैसा कि भारत के नवधनिकों के साथ हुआ करता है, रियल एस्टेट ने उनके जीवन में एक बड़ा मौका प्रदान किया.
1997 में, उन्होंने शहर में एक जमीन खरीदी. जिद्दी किरायेदार तथा संभावित कानूनी समस्याओं के कारण यह संपत्ति उन्हें सस्ते में मिल गयी. सुश्री सरोज ने कहा, ‘मैं लोगों को जानती थी. मैंने सोचा कि मैं यह काम कर सकती हूं… मेरे अंदर ऐसी ताकत है.’ तब तक उन्हें मुंबई में एक दशक से अधिक समय हो चुका था. सुश्री सरोज ने कहा कि वे अपनी इमारत से संबंधित फाइलों का पीछा एक सरकारी दफ्तर से दूसरे दफ्तर तक करती रहीं, जब तक कि किराये दार का मामला सलट न गया. उन्होंने अंतत: उस जमीन पर एक इमारत खड़ी की (उन्होंने दुनिया के सबसे बड़े हीरे के नाम पर इसका नाम कोहिनूर प्लाजा रखा).
वे कहती हैं कि इस बीच उन्हें स्थानीय माफिया की ओर से धमकियां मिलने लगीं, जो संपत्ति के व्यवसाय में किसी बाहरी व्यक्ति के हस्तक्षेप से नाखुश थे. उन्होंने बताया कि इमारत का प्लान के पास हो जाने के बाद एक व्यक्ति ने आकर उन्हें चेतावनी दी कि उनके खात्मे के लिए 500,000 रूपए (11,363 डॉलर) की सुपारी दे दी गयी है और बेहतर है कि वे शहर छोड़ कर चली जाएं. सुश्री सरोज ने कहा कि उस व्यक्ति ने कहा कि, ‘तुम जहां से आयी हो, वहां जमीन पानी मांगती है, लेकिन यहां मुंबई में जमीन ख़ून मांगती हैं.’ वे पुलिस स्टेशन गयीं और उन्होंने इस धमकी की शिकायत दर्ज करायी. पुलिस ने गुंडे को गिरफ्तार कर लिया. उस गुंडे का नाम उन्होंने उस व्यक्ति से जान लिया था जिसने उन्हें उक्त ‘सुपारी’ के बारे में बताया था. उन्होंने कहा, ‘बाद में मामला सुलझ गया.’ 2000 में उन्होंने कोहिनूर प्लाजा बेच दिया और उससे प्राप्त रकम को दूसरे भूमि सौदे में लगा दिया. सुश्री सरोज ने कहा कि इससे उनकी छवि ऐसी महिला की बन गयी जो मुंबई में जटिल समस्याओं को सुलझाने में लोगों की मदद कर सकती है.
2006 में, धातु का ट्यूब बनानेवाली कंपनी कमानी ट्यूब की कमान संभाली (वे पहले इसके बोर्ड में शामिल थीं), जिस पर 1.1 बिलियन रुपए का कर्ज था और जो दिवालिया होने के कगार पर थी. वे कहती हैं कि उन्हें उम्मीद है कि अगले साल तक यह कारखाना सारे कर्ज चुका देगा. उनकी एक चीनी मिल भी है. सुश्री सरोज अपनी सफलता के लिए अपनी धुन को श्रेय देती हैं. वे कहती हैं कि एक बार जब उन्होंने कोई काम करने की ठान लिया तो वे उसे पूरा नहीं कर सकतीं, यह बात मानने को वे तैयार नहीं हैं. उन्होंने कहा, ‘बहुत सारे रास्ते हैं, अगर कोई एक रास्ता काम न आएं तो मैं दूसरा रास्ता तलाशती हूं. अगर उससे भी बात न बने तो मै उसके अन्य विकल्प के बारे में सोचती हूं.’ वे फिलहाल बैलार्ड एस्टेट पर काम कर रही हैं, जिसके आसपास के दफ़्तरों में भारत के सबसे धनी व्यक्ति मुकेश अंबानी का रिलायंस हाउस भी है.
इस बीच उन्होंने अपने छोटे भाई और बहन की शादी के खर्च भी उठाये और दोनों को एक-एक अपार्टमेंट उपहार में दिया. अपनी बेटी को होटल प्रबंधन की पढ़ाई के लिए लंदन और अपने बेटे को पायलट के प्रशिक्षण के लिए जर्मनी भेजा. जहां तक हेलीकॉप्टर का सवाल है, सुश्री सरोज का कहना है कि वे इस साल एक हेलीकॉप्टर और एक विमान खरीदना चाहती हैं, लेकिन अपने निजी इस्तेमाल के लिए नहीं (वे कहती हैं, कम से कम शुरूआत में नहीं). अपने बेटे के विदेश में जाकर प्रशिक्षण लेने के तथ्य का जिक्र करते हुए वे कहती हैं कि वे जिस जिले में पली-बढ़ी हैं, वहां दलित मसीहा डॉ बी. आर. अंबेडकर के नाम के हवाईअड्डे में अरबों डॉलर के उड्डयन हब बानये जाने की योजना है, वहीं एक पायलट प्रशिक्षण स्कूल खोलना चाहती हैं.
साभारः इंडिया रियल टाइम

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