उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रकाश झा की विवादास्पद फिल्म आरक्षण पर बैन लगा दिया है. बैन दो महीने के लिए लगाया गया है. फिल्म को बैन करने के पीछे राज्य में कानून व्यवस्था बिगड़ने की आशंका जताई गई है. तो इधर अनुसूचित जाति आयोग ने भी फिल्म के कुछ दृश्यों और डॉयलग पर एतराज जताया है. आयोग ने विवादास्पद बातों को फिल्म से निकालने को कहा है. फिल्म इस शुक्रवार को रिलीज हो रही है.
यूपी में फिल्म के रिलिज होने पर दो महीने तक बैन की सिफारिश बसपा के अधिकारियों की उच्चस्तरीय समिति ने किया. समिति ने फिल्म देखने के बाद राज्य सरकार को बुधवार शाम को रिपोर्ट सौंप दी. जिसके बाद यूपी सरकार ने दलितों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने को आधार बनाते हुए इस पर बैन लगा दिया. दूसरी ओर तमाम विवादों और ना-नुकुर के बाद सेंसर बोर्ड ने आखिरकार अनुसूचित जाति आयोग को फिल्म दिखा दिया. इसके बाद आयोग के अध्यक्ष पी.एल पुनिया ने कुछ डॉयलग और दृश्यों पर आपत्ति जताया. फिल्म देखने के बाद पुनिया ने बताया, ‘‘हमने आयोग के सभी सदस्यों के साथ मंगलवार को यह फिल्म देख ली है. इसमें कई ऐसे संवाद हैं जो अनुसूचित जाति के लिए अपमानजनक हैं. हमने सेंसर बोर्ड से कहा है कि इन संवादों को फिल्म से हटाकर रिलीज किया जाए.’’ पुनिया ने उदाहरण के तौर पर बताया कि फिल्म में एक जगह कैंटीन में लिखा होता है ‘आरक्षण हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है’, इस बारे में कहा गया कि इसकी जगह यह लिखो कि ‘आरक्षण हमारा जन्मसिद्ध खैरात है’, इस तरह से आरक्षण का मजाक उड़ाया गया है.
पुनिया ने कहा कि उच्चतम न्यायालय और संविधान कह चुका है कि आरक्षण सही है फिर भी फिल्म में इसे गलत तरीके से दिखाया गया है. उन्होंने कहा कि यह फिल्म शिक्षा के व्यवसायीकरण के खिलाफ है. अनुसूचित जाति को अधिकार दिलाने को लेकर जो भूमिका है उसे अमिताभ बच्चन ने निभाया है लेकिन जो संवाद है वह अनुसूचित जाति के लिए अपमानजनक है जो पूरे समाज की समरसता के लिए घातक है. पुनिया से पहले महाराष्ट्र के वरिष्ठ मंत्री और दलित नेता छगन भुजबल भी आपत्ति जता चुके हैं.
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