अगस्त के शुरू में एक महत्त्वपूर्ण यात्रा का मौका आया. विशाखापट्टनम में दुनिया के 50 देशों के जनप्रतिनिधियों से भेंट हुई जो दुनिया के उन विभिन्न देशों के समाजों की आवाज उठाने के लिए दुनिया का भ्रमण कर रहे थे, जिन्हें गुलाम बनाया गया था और दूसरे दर्जे की जिन्दगी जीने को मजबूर कर दिया गया था. जैसे अमेरिका के मूलवासी रेड इंडियन, अफ्रीकी मूल के अश्वेत, मेक्सिको, ब्राजील, चिली आदि दक्षिण अमेरिकी देशों के वे मूलवासी जिन्हें स्पेनी हमलावरों ने पराजित किया था. द. अफ्रीकी अश्वेत समाज के प्रतिनिधित्व करने वाले सज्जन कभी के भारतीय ही थे. उनके सहित 50 देशों के ऐसे ही प्रतिनिधि 'लोगोस होप' नाम के एक विशाल पानी के जहाज पर दासता की नियति से नई पीढ़ी को मुक्ति का संदेश देने के लिए निकले थे. यह सम्मेलन विशाखापट्टनम के समुद्र में खड़े इसी जहाज पर हुआ.
इसी जहाज की एक मंजिल में किताबों की एक विशाल दुकान देखने वाली थी, जिसका नाम विशालता और विविधता के लिए गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रेकार्ड में दर्ज हो चुका है. पानी के जहाज पर दिन गुजारना एक अच्छा अनुभव था, इसमें सन्देह नहीं. विश्व प्रतिनिधियों को भारत के दलित, ओबीसी और जनजातियों के ऐतिहासिक और सामाजिक हालत से रू-ब-रू कराने के लिए कांचा इल्लैया और दलित फ्रीडम नेटवर्क के प्रमुख जोसेफ डिसूजा के अलावा मुझे भी बोलना था. दोपहर के भोजन और शाम के नाश्ते के वक्त आये हुए प्रतिनिधियों से हमारी लंबी बातें हुईं. खासतौर से दलित प्रश्न पर बड़े पैमाने पर विश्व जनमत तैयार करने के मुद्दे को लेकर.
उन्हें इस बात पर गहरा आश्चर्य हुआ कि ऋग्वेद से लेकर परवर्ती हिन्दू धर्मग्रंथों में जातीय गैरबराबरी ही नहीं दलित, पिछड़ी जातियों पर अमानवीय अत्याचारों के विधान हैं, जिनके बारे में विदेशों में बसे भारतवासी बिल्कुल नहीं जानते. सम्मेलन के प्रतिनिधियों ने कहा कि विदेशों में बसे भारतवासियों तक वे इस मुद्दे पर लिखा साहित्य ज्यादा से ज्यादा प्रचारित करने की कोशिश करेंगे.
निस्संदेह जहां 'लोगोस होप' में वंचित समाज की आवाज उठाने निकले पचास देशों के जनप्रतिनिधियों को भारत में दलितों के इतिहास और वर्तमान स्थिति की सीधी तस्वीर मिली, वहीं हमें भी दुनिया में अन्य स्थानों के जातीय भेदभाव के स्वरूप का एक अलग ही परिचय मिला. अभी तक हमें अमेरिका में अफ्रीकी अश्वेतों के साथ हुए भयावह अत्याचारों की जानकारी अमरीकी अश्वेत लेखकों की कृतियों से मिली थी. लेकिन अमेरिका के रेड इंडियन समुदाय की स्थितियों से हम ज्यादा परिचित नहीं थे.
अमेरिकी महाद्वीप पर कब्जा करने वाले श्वेत समुदाय ने रेड इंडियनों पर जो भीषण अत्याचार किए थे, उनकी जानकारी काफी हद तक हावर्ड जिन की मशहूर किताब 'ए पीपुल्स हिस्ट्री ऑफ द यूनाइटेड स्टेट्स' में मिलती है लेकिन रेड इंडियंस द्वारा लिखी किताबें मैं दुर्भाग्य से देख नहीं सका. हमें हैरानी हुई स्काटलैंड की स्थिति पर. वहां के प्रतिनिधि अपनी परंपरागत स्कर्ट वाली पोशाक में बेहद आकर्षक व्यक्ति थे. हमारे साथ दलित फ्रीडम नेटवर्क के अध्यक्ष जोसेफ डिसूजा ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो रहे दलित आंदोलन पर विस्तारपूर्वक बयान दिया जिसके चलते संयुक्त राष्ट्र ने भी अंतत: दलित प्रश्न को गंभीरता से लेना शुरू किया है.
दलित प्रश्न की सीमा केवल भारत ही नहीं है. बहुत बड़ी संख्या में भारतवासी अमेरिका, यूरोप और आस्ट्रेलिया तक में बसे हुए हैं और मुसलमानों को छोड़कर बाकी लोग प्राय: हिन्दू ही हैं. वे अपने संस्कार अपनी धार्मिक परंपरा के साथ ही बनाए हुए हैं. वहां भी जातीय भेदभाव और अलगाव के तत्व बने हुए हैं. जाहिर है वहां बहुत बड़ा तबका ऐसा भी हो सकता है, जो जातीय भेदभाव के सवाल पर आधुनिक और उदार हो बशर्ते कि उन तक दलित प्रश्न ही तार्किकता पहुंच सके. वह वहां पहुंच सके इस नजरिए से भी दलित विमर्श को वैश्विक स्तर पर खड़ा होना होगा और इसके लिए अंग्रेजी अपनानी होगी. कांचा इल्लैया या जोसेफ डिसूजा ने अंगरेजी में किताबें लिखी हैं जिनकी पैठ पश्चिम में हुई है और इनका असर भी हो रहा है. ब्राजील के मि. मार्शल, धार्मिक आजादी के लिए काम कर रही ऐजेला वू और टीना रेमीरेज अमेरिका में इस प्रश्न पर काम कर रही हैं. उनके साथ उप्र के पूर्वांचल का हमने 2009 में दौरा किया था.
लेखक- मुद्राराक्षस
साभारः समय लाइव
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