संविधान में भले ही महिला व दलितों के प्रति भेदभाव व छुआछूत को खत्म करने की भावना और प्रावधानों को शामिल किया गया हो, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है. खासतौर पर राजस्थान और हरियाणा जैसे राज्यों में दलित उत्पीड़न की प्रवृति में कोई परिवर्तन नहीं आया है. प्रदेश में एक नया मामला सामने आया है, जिसमें दलित महिला सरपंचों को अपने साथी पंचायत प्रतिनिधियों व विकास अधिकारियों के भेदभाव का शिकार होना पड़ रहा है. जिससे उन्हें काम करने में काफी कठिनाइयों का सामना करना पर रहा है. दलित महिला सरपंचों को आदेशों को मानने से भी ये साफ मुकर जाते हैं.
लगातार इस तरह की शिकायत आने के बाद अब ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग ने अब ऐसे ग्राम सेवकों व पंचायत प्रतिनिधियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की घोषणा की है. इस संबंध में तत्काल एक सर्कुलर जारी करते हुए सभी जिला परिषद के सीईओ को महिला सरपंचों की शिकायतों पर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई के आदेश दिए गए हैं. राज्य की 9177 ग्राम पंचायत में से लगभग 734 पंचायतों का प्रतिनिधित्व कर रही हैं. जिला परिषद विभाग के उपशासन सचिव ने यह माना है कि अधिकतर ग्राम पंचायतों में नव निर्वाचित दलित महिला सरपंचों को ग्राम सेवकों व पंचायत समिति की ओर से केन्द्र व राज्य सरकार की ग्रामीण विकास योजनाओं की जानकारी नहीं दी जा रही है. साथ ही ये सदस्य महिला सरपंचों के आदेशों का पालन भी नहीं करते हैं. महिला के सरपंच होने के कारण ग्रामसेवकों द्वारा उनके विभिन्न आदेशों की अनदेखी भी की जाती है. ऐसे में उपशासन सचिव ने दलित महिला सरपंचों को योजनाओं की समय पर लिखित में जानकारी देने के आदेश दिया हैं.
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