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Sunday, November 20, 2011

उत्पीड़न के खिलाफ धरने पर बैठा दलित शिक्षक

यह समाज के जागरूक होने का ही नतीजा है कि अब लोग अपने हक के लिए लड़ना सीख गए हैं. अब तक चुप बैठने वाले लोग लड़ना सीख रहे हैं. ताजा घटनाक्रम में उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में एक प्रधानाध्यापक अपने उत्पीड़न की शिकायत पर पुलिस द्वारा कार्रवाई न करने के बाद अनिश्चितकालीन धरने पर बैठ गए हैं. इन्हें डीआईओएस कार्यालय में पानी पीने पर जाति सूचक शब्दों का इस्तेमाल कर अपमानित किया गया था. गजरानी इंटर कॉलेज सिसौआ के प्रधानाध्यापक व पूर्व ग्राम प्रधान कमलेश चंद्र भारती के साथ डीआईओएस कार्यालय के कर्मचारियों ने पानी पीने पर अपमानित किया था.
इस भेदभाव के खिलाफ उन्होंने लिपिक दीपक दीक्षित व ड्राइवर अरविंद रस्तोगी के खिलाफ थाना सदर बाजार प्रभारी समेत एसपी को प्रार्थना पत्र दिया लेकिन रिपोर्ट दर्ज नहीं हुई. इसके बाद वह 14 नवंबर से धरने पर बैठ गए. प्रधानाध्यापक के साथ भेदभाव की शिकार एक आंगनबाड़ी कार्यकत्री विमला भी धरने पर बैठ गई है. इनका साथ देने के लिए कुछ स्थानीय नेता भी सामने आ गए हैं. जहां तक आंगनबाड़ी केन्द्र चांदा में कार्यरत आंगनबाड़ी कार्यकत्री विमला देवी की बात है तो उसके साथ ग्राम कहेलिया के प्रधान पति अमित वर्मा ने मारपीट की और जाति सूचक शब्दों से अपमानित किया था. स्थानीय नेताओं ने इस मुद्दे को उठाया है. महान दल के जिलाध्यक्ष सुरेश चन्द्र गौतम ने प्रशासन को चेतावनी दी है कि यदि मामले को रफा-दफा करने की कोशिश हुई तो पुलिस अधीक्षक, जिलाधिकारी का पुतला दहन किया जायेगा. धरने पर बैठे प्रधानाध्यापक भारती और आंगनबाड़ी कार्यकत्री विमला देवी के साथ अन्य शिक्षक सुरेन्द्र कुमार, राजकिशोर, बृजलेश कुमार, कमलेश कुमार, मीना गौतम, दिनेश कुमार, खुशीराम, रामचन्द्र वर्मा, प्रधानाचार्य पब्लिक स्कूल कहेलिया, कौशल किशोर वाजपेई, सावित्री देवी, सुशील कुमार, वीरेन्द्र कुमार, छीतेपुर, अर्चना देवी, श्रवण कुमार, सर्वेश कुमार भी शामिल हैं.

Friday, August 12, 2011

आरक्षण पर बवाल बेवजह

कई दिनों से फिल्म आरक्षण पर 'मत' पूछा जा रहा था. मैने पहली प्रतिक्रिया अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष पी.एल पुनिया द्वारा फिल्म देखने के बाद दिए बयान के आधार पर दी थी. लेकिन अब खुद फिल्म देखने के बाद कह सकता हूं कि फिल्म पर बवाल बेवजह है. फिल्म में कहीं भी दलितों को कमजोर और लाचार नहीं दिखाया गया है. बल्कि वह सजग है. अपने अधिकारों को लेकर अपने स्वाभिमान को लेकर. वह मेधावी है, टॉपर है. मुंहतोड़ जवाब देना जानता है. फिल्म में जब-जब उस पर उंगली उठी है, उसने जवाब दिया है.
'हंस चुगेगा दाना' // 'आप लोग लात की भाषा समझते हैं' // और सैफ द्वारा दी गई मेहनत की जिस परिभाषा पर बवाल मचा है और उसको फिल्म से निकालने की बात हो रही है, मेरे 'मत' से उसको फिल्म से हटाने की कोई जरूरत नहीं है. आप खुद से पूछिए, क्या आपके-हमारे पीठ पीछे ऐसी बातें नहीं कही जाती. फिर सामने से उसका सामना करने में कैसा डर? बल्कि मैं तो कहूंगा कि जिसे कहना है सामने से आकर कहे, ताकि हम उसे जवाब दे सकें. हमने जवाब दिया है- हम दे रहे हैं जवाब. बल्कि फिल्म में यह सच दिखाया गया है कि अपने दम पर दलितों के आगे बढ़ने से और दलित हितैषियों से तथाकथित सवर्ण तबके को कैसे मिर्च लगती है और वह एक हो जाता है.
फिल्म में एक सवर्ण लड़की (दीपीका) को दलित लड़के (सैफ) के साथ प्रेम करते दिखाया जाता है लेकिन लड़की के मां-बाप इस पर कोई ऐतराज नहीं करते. कल तक फिल्म में दलित को 'कचरा' (लगान) दिखाया जाता था. लेकिन आक्रोश (अजय देवगन) और आरक्षण (सैफ) जैसी फिल्मों में वह मुख्य भूमिका में आ रहा है. मेरे 'मत' से यह स्थिति बेहतर है.
बात होनी जरूरी है. समस्या भूल जाने से या उसे छिपाने से वह खत्म नहीं होती. उसका सामना करना होता है. हमें सामना करना होगा.
जहां तक दलितों और पिछड़ों को मिलने वाले आरक्षण की बात है, मैं शिक्षा सहित तमाम क्षेत्रों में आरक्षण का घोर समर्थक हूं. और तब तक रहूंगा जब तक एक ब्राह्मण और क्षत्रिय कहा जाने वाला समाज अपनी बेटी का रिश्ता लेकर दलित के घर नहीं आता. तब तक रहूंगा, जब तक अगड़ों और पिछड़ों की यह व्यवस्था है. जब तक देश में कहीं भी एक भी दलित पर अत्याचार की खबर आती रहेगी, मैं आरक्षण का समर्थन करता रहूंगा.
जहां तक प्रकाश झा की बात है, ट्विटर पर उनका दलित विरोधी ट्विट सामने आया था. मुझे उससे घोर ऐतराज है. मैं विरोध करता हूं. हां, झा को धन्यवाद, जिसने हम सबको एक बार फिर और मजबूती से साथ लाकर खड़ा कर दिया. इस एकता को कायम रखने की जरूरत है.

अशोक दास
संपादक
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