Friday, September 2, 2011

मेरिट का रिजर्वेशन से कोई मतलब नहीं- प्रो. मालाकार

पिछले दिनों आई प्रकाश झा की फिल्म ‘आरक्षण’ ने देश भर में रिजर्वेशन और मेरिट को लेकर एक बहस छेड़ दी थी. ये संयोग है या सोची समझी रणनीति की मंडल कमीशन के 21 साल गुजरने के बाद फिल्म को रिलीज करने का फैसला किया गया. फिल्म की रिलिज होने से पहले से लेकर बात तक इस मुद्दे पर पक्ष और विपक्ष के बीच चैनलों से लेकर अखबारों तक में खूब बहस हुई. सभी पक्षों ने अपनी राय दी. लेकिन जेएनयू में स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज के चेयरमैन एस एन मालाकार का मानना है कि मेरिट का रिजर्वेशन से कोई मतलब नहीं है. जब मेरिट का अवसर ही नहीं मिला तो मेरिट के साथ इसकी तुलना ही क्यों की जाती है?
देश में मेरिट और डीमेरिट को लेकर न्यायालय ने साफ तौर पर कहा है कि रिजर्वेशन का मेरिट से कोई लेना-देना नहीं है. इतिहास में निचले तबके को मेरिट से वंचित रखा गया इसलिए रिजर्वेशन दिया गया. रिजर्वेशन मेरिट के सवाल पर नहीं दिया जाता है. वंचित समाज के लोगों में मेरिट नहीं था यही डिमेरिट था, जिसकी वजह से रिजर्वेशन दिया गया है. इस बारे में दिल्ली हाईकोर्ट पहले ही फैसला सुना चुकी हैं. मनु स्मृति में लिखा हुआ है कि शुद्र और स्त्रियों को धन और शिक्षा पाने का अधिकार नहीं है. शिक्षा हासिल करने वाले के कान में शीशा पिघला कर डाल दिया जाएगा. इसका मतलब ये हुआ कि पूर्व में सवर्ण तबके ने शोषित समाज के लोगों को धन और शिक्षा से वंचित कर दिया. ऐसी स्थिति में मेरिट का सवाल कहा से उठता है? जब आपने निचले तबके को पढ़ने ही नहीं दिया तो इस सवाल का कोई औचित्य नहीं है. इसलिए संविधान सभा में जब बहस हुई तो साफ कहा गया कि मेरिट का रिजर्वेशन से कोई मतलब नहीं है. जब मेरिट का अवसर ही नहीं मिला तो मेरिट के साथ इसकी तुलना ही क्यों की जाती है.
मेरिट क्या होता है? अगर इसे सही तरीके से परिभाषित करें तो मेरिट को लेकर हंगामा मचाने वालों को बात समझ में आ जाएगी. मेरिट उसे कहते है जो अपने श्रम के द्वारा कोई व्यक्ति नई चीज उत्पादित करता है. जो सोसाइटी के लिए भी उपयोगी हो. मेरिट का मतलब ये नहीं है कि हमने किताब को पढ़ लिया.
उदाहरण के तौर पर स्कूल से दो बच्चे को चुनते हैं. उनमें से एक बच्चा आदिवासी इलाके का है जबकि दूसरा एलिट घराने का. अब इन दोनों से दाल के अलग-अलग किस्म पहचानने को कहें तो आदिवासी बच्चा सभी दालों की पहचान बता देगा, लेकिन एलिट घराने का बच्चा दालों की पहचान नहीं बता पाएगा. इन हालातों में मेरिट क्या है, यह किसके पास है? जो प्रकृति के साथ, श्रम के साथ उत्पादन की प्रक्रिया में जीता है वो मेरिट के दायरे में है. मेरिट का मतलब सिर्फ किताबी ज्ञान होना ही नहीं है. मेरिट का मतलब ये है कि जो प्रकृति को जाने और जानने की इच्छा रखें. सोसाइटी को बचाए रखने के लिए जिसके पास सृजनात्मक क्षमता हो, वो मेरिट कहलाता है. हमारे ही पैदा किए अन्न पर ब्रह्मणवाद और एलिट वर्ग भोजन करते हैं और एक बार भी मेहनत करने के लिए खेत में नही जाते हैं. ये हमारी मेरिट है कि हम आपको भोजन देने में सक्षम है. मेरिट ये नहीं है कि हम आपके मुंह में श्लोक दे रहे हैं.
एलिट वर्ग, जो अंग्रेजी बोलता और उस भाषा में पढाई करता है तो उसके पास मेरिट है. और जो गांव में रहकर हिंदी में पढाई करता है उसके पास मेरिट नहीं है. ये सोच सही नहीं है. मेरिट का मतलब अंग्रेजी में पढाई करना भर ही नहीं है. दरअसल ब्रह्मणवाद और पूंजीवाद भी मेरिट के इसी लकीर को पकड़कर रखना चाहते हैं. ब्रह्मणवाद और पूंजीवाद भी यही चाहता है कि वंचित लोगों को अंग्रेजी जुबान में नौकरी देंगे, लेकिन इस जुबान में पढने भी नहीं देंगे. इसका सीधा मतलब ये है कि खास जुबा़न में खास पूंजीपति वर्ग पढे़गा और उन्हीं खास लोगों के लिए नौकरी का भी इंतजाम करेगा. आज के समय में रोजगार देने का सवाल कौन तय करता है? ये इस देश की सरकार, सरकार में बैठे लोगों का चरित्रा तय करता है. मेरिट का मतलब अंग्रेजी और किताबी ज्ञान ही होता तो रूस, जापान और चीन जैसे देशों का विकास नहीं होता. इन देशों में अंग्रेजी नहीं होने के बावजूद इनका विकास हमसे बेहतर हुआ है. ये सच्चाई छुपने वाली नहीं है.
एक खास वर्ग चाहता है कि सच के आग को राख से ढक कर रखा जाए तो ये संभव नहीं है. देश में होने वाला प्राइवेटाइजेशन, डिमेरिटाइजेशन है. प्राइवेटाइजेशन का मतलब-मेरिट को डिमेरिट में बदलना है. इस बार दिल्ली यूनिवर्सिटी के कॉलेजों ने दाखिले के लिए 100 प्रतिशत कट ऑफ लिस्ट जारी किया. आखिर इस कट ऑफ लिस्ट का क्या मतलब है? ये एक साजिश है ग्रामीण पृष्ठ के बच्चों को अच्छे कॉलेजों से वंचित रखने की. आज 100 फीसदी रिजल्ट निकालने के लिए ज्यादातर सीबीएसई का स्कूल पहले ही प्रश्न की जानकारी दे देता है, यहां तक की उत्तर भी ब्लैक बोर्ड पर लिख दिया जाता है, ताकि रिजल्ट 100 प्रतिशत हो. प्राइवेट स्कूल प्रतिशत बनाए रखने के लिए चोरी तक कराने से नहीं चूक रहे. वहीं गांव का कोई बच्चा दिन-रात मेहनत करता है और 60 प्रतिशत नंबर लाता है तो उसे मेरिट नहीं है. ये कैसी व्यवस्था है. दरअसल 100 प्रतिशत कट ऑफ लिस्ट वाले बच्चे की मेरिट कम नहीं है बल्कि उस स्कूल का मेरिट कम है जो शिक्षा का व्यवसायिकरण बनाए रखने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाता है. असल में पूंजीवाद और बाजारवाद की दुनिया में मेरिट की अपनी परिभाषा गढी जा रही है.
जो छात्रा-छात्राएं मेरिट और 100 फीसदी कट ऑफ लिस्ट के नाम पर दिल्ली के नामी-गिरामी कॉलेजों में दाखिला लेते हैं, उन छात्रा-छात्राओं की मेरिट स्नातक करते-करते हवा हो जाती है. यानि उनका प्रतिशत घटकर 60 फीसदी के आस-पास आ जाता है. आखिर 100 फीसदी वाला मेरिट कहां छूमंतर हो जाता है? ये साबित करता है कि निजीकरण कैसे अशिक्षाकरण को बढ़ावा दे रहा है. नॉलेज कमिशन को सरकार कितना भी बना लें, उससे कुछ नहीं होने वाला है. देश में ज्यादातर कोचिंग संस्थान प्रश्न पत्र लीक करने के जुगाड़ में होते है ताकि मेरिट के नाम पर कमाई की जा सके. यही वजह है कि समय-समय पर पर्चे लीक होने की जानकारी मिलती रहती है. ऐसे में गरीब के बच्चे/ओबीसी/एससी/एसटी के बच्चे महंगे कोचिंग क्लासेस में कहां से पढाई करेंगे. सामाजिक न्याय को पूंजीवाद और ब्रह्मणवाद ने काफी हानि पहुंचाया है. जागरुक लोगों को ये बात सोचना काफी जरुरी है. ऐसा नहीं है कि सरकार इन सभी बातों से अंजान है. लेकिन सरकार किसी खास वर्ग की होती है. ऐसे में मेरिट और रिजर्वेशन को लेकर जो लोग भी तर्क-वितर्क करते हें वो बेमानी है.

(शिल्पकार टाइम्स के सिनियर असिस्टेंट एडिटर पंकज कुमार द्वारा की गई बातचीत पर आधारित. साभारःशिल्पकार टाइम्स)

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