Monday, August 29, 2011

दलितों को ‘धन्य’ कर गया अन्ना का आंदोलन

तब रामलीला मैदान में मेला लगा था. ‘अन्ना मेला’. बड़ी भीड़ थी. हजारों लोग पहुंचे थे मैदान में. अन्ना को अनशन जो तोड़ना था. वह अन्ना जो पिछले बारह दिनों से भ्रष्टाचार के खिलाफ देश भर के लाखों लोगों की आवाज बना था. तभी मीडिया में खबरें चलने लगी कि अन्ना एक दलित और एक मुस्लिम बच्ची के हाथ से अपना अनशन तोड़ेंगे. चौंकना लाजिमी था. ‘दलित बच्ची’, ‘मुस्लिम बच्ची’ ये दोनों शब्द बेध से रहे थे. लगा, बारह दिन के अनशन की कलई खुल गई हो. इसी दिन अचानक से मंच पर अंबेडकर भी प्रकट हो गए थे. अन्ना के रणबांकुरों का ह्रदय परिवर्तन हो चुका था. ‘बाबा साहब का भारत, बाबा साहब का संविधान, बाबा साहब की जय’. एक बार फिर चौंका. अब यकीन हो चुका था कि आंदोलन अपने असली रंग में आ चुका है.
अन्ना के दरबार में सीना ताने उनके मंत्री मंच के चारो ओर घुमड़ रहे थे. पिछले शाम की जीत ने उन्हें मदहोश कर दिया था. राजनीतिक बिसात बिछ चुकी थी. पहले मुख्य सेनापति पधारे. इनकी खासियत यह है कि ये दलितों और पिछड़ों को मिलने वाले आरक्षण के घोर विरोधी हैं. आते ही इन्होंने बाबा साहब का जयकारा करवाया. आप खुद सोचिए कि आरक्षण का विरोध करने वाले व्यक्ति की जुबान पर जब बाबा साहब का नाम हो तो उसके दिल में क्या चल रहा होगा. खैर, उसने बाबा साहब का जयकारा करवाया. अमूमन नारे लगाने के वक्त रामलीला मैदान की गूंज पूरे चांदनी चौक में सुनाई देती थी. लेकिन इस बार आवाज जरा धीमी आई. बाबा साहब पर लेख पढ़ा गया. उनके संविधान की दुहाई दी गई कि हम इसकी इज्जत करते हैं. ध्यान रहे, ये बातें वो लोग कर रहे थे जिन्होंने आंदोलन शुरू करने से लेकर आंदोलन खत्म करने तक हर पल संविधान को तोड़ने की बात कही थी. संविधान को बदलने की बात की थी. संसद में लोकपाल पर चर्चा के दौरान शरद यादव का सवाल वाजिब था कि अन्ना ने हर पल गांधी की बात की, शिवाजी को याद किया, लेकिन वह अपने प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले देश के दो महान विभूतियों अंबेडकर और फुले को भूल गए. सोचना होगा. भूल गए या फिर याद ही नहीं किया. मंच से इस तरह की बातों ने अन्ना के आंदोलन की कलई खोल दी थी.
रही-सही कसर दो खास समुदाय की बच्चियों से अन्ना का अनशन तुड़वाने की घोषणा कर के किया गया. अब तक लोकपाल के समूचे आंदोलन में दलितों और मुसलमानों को कभी भी शामिल नहीं किया गया था. लेकिन जिस तरीके से इन दोनों समुदाय के बच्चों को सामने लाया गया उसने ब्राह्मणवादी सोच का एक घिनौना चेहरा पेश किया. कोर टीम से जुड़े एक कवि महोदय बार-बार मंच से घोषणा कर रहे थे और दोनों बच्चों की जात और धर्म बता रहे थे. गोया कह रहे हों ‘’ए दलितों...ए पिछड़ों...ए मुसलमानों. तुमने हमारा बहुत विरोध किया. लेकिन देखो, देखो कि हम कितने उदार हैं. तुम्हारे बच्चों के हाथ से पानी पी लिया. हमने तुम पर अहसान किया. अब जाओ तुम्हारी कौम पवित्र हो गई. अब विरोध छोड़ो. हमें लोकपाल बनाने दो. अगली बार फिर आंदोलन करेंगे तो तुम लोग साथ देना. हम तुम्हारी कौम को फिर से धन्य कर देंगे.’’

2 comments:

  1. बहुत ही सही मुद्दे को उठाया है आपने,मुझे ये तो नहीं पता की ये की ये आन्दोलन सही है या गलत पर इतना जरुर कहूँगा की इस आन्दोलन से दलितों का भला तो नहीं होने वाला....

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  2. Iss andolan se lag rha ki aaj bhi dalit acchoot h. kiya dalit ladki ke hath se pani pina yh dikhana tha ki hum aapke humdardi h.nhi esi hum dardi muje nhi chaeye.

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