भाजपा के शासन वाले मध्यप्रदेश राज्य में दलित हितों की धज्जियां उड़ रही है. शिवराज सिंह चव्हाण की सरकार अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए मिले पैसे का प्रयोग धड़ल्ले से अन्य योजनाओं में कह रही है जबकि दलित हितों की अनदेखी अपने चरम पर है. राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के हालिया दौरे ने सारी पोल खोल दी है. आयोग के मुताबिक प्रदेश में अनुसूचित जाति (अजा) कल्याण की योजनाओं का धन बांध, पुलिया, सड़क आदि बनाने में खर्च किया जा रहा है. जबकि दूसरी ओर अनुसूचित जाति के मामलों पर कार्यवाही के लिए आठ पुलिस थानों में बुनियादी सुविधाएं भी नहीं हैं. इनमें से हर थाने में महिला पुलिसकर्मी भी तैनात नहीं हैं. अजा के फर्जी जाति प्रमाणपत्र के आधार पर नौकरी हासिल करने वालों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जा रही है. अजा पर अत्याचार की एफआईआर भी आसानी से दर्ज नहीं की जाती है.
दलितों पर अत्याचारे के मामले में भी मध्य प्रदेश तीसरे स्थान पर है. राष्ट्रीय अजा आयोग के अध्यक्ष पीएल पुनिया के मुताबिक अन्य राज्यों की तरह मप्र में भी अजा पर अत्याचार करने वाले लोगों के खिलाफ पुलिस थानों में रपट दर्ज न करने की काफी शिकायतें सही पाई गई हैं. आलम यह है कि 24 मामलों में तो न्यायालय के आदेश के बाद एफआईआर दर्ज की गई. जबकि भिंड के एक मामले में तो आयोग के निर्देश के बावजूद रपट दर्ज नहीं की गई. दलितों पर अत्याचार करने वाले 40 फीसदी मामलों में दोषियों को सजा नहीं मिल पाती है. सन् 2006 से 2010 के बीच 72 लोगों ने फर्जी तरीके से अजा कोटे की नौकरियां हथिया लीं. इन शिकायतों को समिति द्वारा सही पाए जाने के बावजूद भी दोषियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की गई है. ऐसे दोषी अब भी न केवल सरकारी सेवा में बने हुए हैं बल्कि पदोन्नति भी पा रहे हैं. वहीं दूसरी ओर राज्य में आरक्षित पांच हजार पद लंबे समय से खाली पड़े हैं. सरकार द्वारा इस पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है. यही वजह है कि पिछले एक दशक से आरक्षित पद खाली पड़े हैं.
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