सामाजिक न्याय मंच (Social Justice forum) द्वारा 5 सितंबर, 2011 को जंतर-मंतर पर विशाल रैली आयोजित की जा रही है. यह रैली सुबह 10 बजे रानी झांसी रोड स्थित अंबेडकर भवन से शुरू होकर जंतर-मंतर पहुंचेगी. लोकपाल में दलितों, पिछड़ों एवं अल्पसंख्यकों की हिस्सेदारी एवं उनके हितों की रक्षा के लिए यह एक प्रयास है. आप सब भी आएं. हमारी लड़ाई हमें ही लड़नी है. तो सुबह 10 बजे अंबेडकर भवन पर इंतजार रहेगा....
प्रिय साथियों, कुछ विचारनीय सवालः-
- क्या दलित, आदिवासी, धार्मिक अल्पसंख्यक एवं पिछड़ा वर्ग इस देश के नागरिक नहीं हैं?
- बंधुआ और बाल मजदूर अधिकांश केवल दलित व आदिवासी वर्ग से ही क्यों?
- लोकपाल तैयार करने में इन वर्गों के प्रतिनिधियों को क्यों नहीं रखा गया है?
- आज भी छह लाख दलित परिवार सिर पर मैला ढोकर पेट पालते हैं. इस शर्मनाक प्रथा को चलाने वाले क्या भ्रष्टाचार की श्रेणी में नहीं आते, जबकि इसके खिलाफ कानून बना है.
- शिक्षा में भ्रष्टाचार के कारण लगभग 80 प्रतिशत दलित व 85 प्रतिशत आदिवासी अशिक्षित हैं.
- क्या 15 प्रतिशत स्वर्ण जाति के लोग हमारा प्रतिनिधित्व करते है?
- देश के प्राकृतिक संसाधनों जिसमें जमीन प्रमुख है, का दलितों और आदिवासियों में न बॉंटा जाना सबसे बडा भ्रष्टाचार है इस वजह से 80 प्रतिशत से अधिक दलित और आदिवासी परिवार भूमिहीन क्यों हैं?
- क्या इस कथित बिल के पास हो जाने के बाद भ्रष्टाचार पूर्णतया खत्म हो जाएगा, जबकि भ्रष्टाचार की जडें वर्तमान सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक और धार्मिक व्यवस्था में बहुत गहरे में पैठीं हों जिसे हम आए दिन अपने इर्द-गिर्द महसूस करते हैं और उसके शिकार होते हैं.
- वर्तमान शिक्षा तंत्र, मीडिया, निजी क्षेत्र में फैले भ्रष्टाचार के बारे में चुप्पी क्यों?
- क्या भ्रष्टाचार खत्म करने के इस तमाम प्रायोजन में कहीं कोई छद्म एजेंडा है?
‘’लोकपाल या जन लोकपाल भारत के दो इंडिया बनाने का षड्यंत्र’’
इन दिनों लोकपाल और जन लोकपाल पर बहस चल रही है. जिस ढंग से जनलोकपाल पर हुए अनशन को मीडिया, कार्पोरेट जगत और कुछ संगठनों का बढ़-चढ़ कर सहयोग दिखाई दिया मानों यह सारा कार्यक्रम उन्हीं के द्वारा प्रायोजित है. इसके समानान्तर दलित संगठनों द्वारा विभिन्न आंदोलनों के माध्यम से यह प्रयास किया गया कि लोकपाल बिल में दलितों, आदिवासियों, पिछड़ा वर्ग एवं धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ हो रहे सामाजिक और आर्थिक शोषण को भी भ्रष्टाचार की श्रेणी में डालकर लोकपाल का हिस्सा बनाया जाए. दलित संगठनां द्वारा चलाए गए इतने आंदोलनों के बावजूद देश की 85 प्रतिशत जनता के प्रतिनिधियों को लोकपाल बनाने वाली समिति में न रखकर कुछ व्यक्तियों द्वारा चलाए जा रहे अनशन के समक्ष ऐसा लगता है मानो देश की संसद तक ने समर्पण कर दिया हो. हम यह स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि हम लोकपाल विधेयक के बिल्कुल समर्थन में हैं किन्तु उस लोकपाल बनाने वाली समिति में हमारी जनसंख्या के अनुपात में भागीदारी सुनिश्चित की जाए जिससे हमारे अधिकारों की अनदेखी न हो.
सामाजिक न्याय मंच के माध्यम से हम पुरजोर मांग करते हैं कि:
- प्रस्तावित लोकपाल बिल में भ्रष्टाचार की व्यापक परिभाषा- जैसे दलितों के साथ जातिय, सामाजिक, धार्मिक व शैक्षिक आधार पर भेदभाव को भी शामिल किया जाए.
- बाबासाहेब द्वारा बनाए गए संविधान की मूल भावना के साथ किसी प्रकार की छेड़छाड़ न की जाए.
- मीडिया, कॉरपोरेट जगत, सरकारी अनुदान पर चल रहे स्वयं सेवी संगठनों (एन.जी.ओ.) भारत सरकार एवं राज्य सरकारों द्वारा अनुसचित जाति उपकार्य योजना एवं अनुसूचित जनजाति कार्ययोजना के अंतर्गत दलितों और आदिवासियों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में बजट न दिए जाने को भी इस बिल में भ्रष्टाचार माना जाए.
- सिर पर मैला ढ़ोने की प्रथा को चलाने वाले लोगों को सामाजिक भ्रष्टाचार मानते हुए इस बिल में शामिल किया जाए.
- न्यायपालिका, भूमि वितरण, पंचायतों, नगर पालिकाओं, नगर निगमों एवं अन्य स्वायत्तशासी संस्थाओं को भी प्रस्ताववित लोकपाल बिल के अंतर्गत लाया जाए.
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