Tuesday, September 13, 2011

कागजी योजनाओं की बांट जोह रहे हैं बिहार के महादलित

आजादी के बाद देश में दलितों के उत्थान के लिए कई कार्यक्रम और योजनाएं चलाई गईं तथा संविधान में विशेष आरक्षण की व्यवस्था भी की गई. लेकिन आजादी के छह दशक से अधिक गुजरने के बावजूद ये योजनाएं हमारे लोकतंत्र को मुंह चिढ़ा रही हैं. बिहार में एक कोशिश के तहत दलित वर्ग की कमजोर जातियों को एक साथ लाकर उन्हें लेकर महादलित संघ बनाया गया था. लेकिन इनकी लिए बनीं तमाम योजनाएं सरकारी कागजों तक पर सिमट कर रह गई है.
महादलित के गठन की मूल मंशा दलितों में भी अत्याधिक रूप से पिछड़ों की पहचान कर उन्हें समाज की मुख्य धारा से जोड़ना है. राज्य सरकार द्वारा उठाए गए कदम वास्तव में क्रांतिकारी कहे जा सकते हैं. इस वर्ग में मुसहर जाति को भी शामिल किया गया. लेकिन बिहार सरकार द्वारा संचालित महादलित उत्थान योजना से अब भी ये वर्ग पूर्ण रूप से लाभान्वित होता नजर नहीं आ रहा है. सुविधाओं का लाभ मिलना तो दूर, इस वर्ग में शामिल कई महादलितों तक योजनाओं की जानकारी भी नहीं पहुंची है. गौरा बौराम प्रखंड का मंसारा मुसहर ऐसा ही एक गांव है. दरभंगा से 75 किलोमीटर की दूरी पर बसा यह इलाका कमला, कोसी और गेहूंआ नदियों के बीच टापू की तरह घिरा हुआ है. हैरत की बात यह है कि मुसहर समुदाय की अच्छी खासी आबादी होने के बावजूद यहां के लोगों के पास रहने के लिए अपनी जमीन तक उपलब्ध नहीं है. ये लोग नदियों पर बनाए गए बांध के आस-पास सरकारी जमीन पर अस्थाई आशियाना बनाकर रहने को मजबूर हैं, लेकिन इन्हें हर वक्त यह डर भी सताता रहता है कि न जाने कब सरकारी बाबू का फरमान आए और इनके घर-बार उजाड़ दिए जाएं. दूसरी तरफ बरसात के मौसम में जब नदियां उफान पर रहती हैं तो मंसारा मुसहरवासियों के जीवन में भी तूफान आ जाता है. अपने और परिवार की जान बचाने के लिए ये लोग बांध पर शरण लेने को मजबूर हो जाते हैं. इस समुदाय के लोग मजदूरी कर बमुश्किल अपने परिवार का गुजारा भर कर पाते हैं जो बाढ़ के दौरान छिन जाता है. ऐसे में इन्हें पेट भरने के लिए किस तरह कठिनाईयों का सामना करना पड़ता होगा इसका अंदाजा कोई भी लगा सकता है. सरकारी महकमा न तो इनके पेट भरने का माध्यम बनता है और न ही इनकी समस्याओं का स्थाई हल ढूंढ़ पाता है.
आलम यह है कि इस समुदाय के लोगों को कई दिनों तक एक वक्त का ही खाना नसीब हो पाता है. स्थाई प्रमाण पत्र नहीं होने की वजह से इनके पास राशन कार्ड तक उपलब्ध नहीं है. जिससे सस्ते दर पर मिलने वाली सरकारी योजनाओं का ये लाभ उठा सकें. वहीं ग्रामीणों को इलाके में ही रोजगार मुहैया कराने की गारंटी देने वाला मनरेगा इनकी गरीबी को कम करने में असरदार साबित नहीं हो पा रहा है. इस स्कीम का हाल ये है कि ज्यादातर लोगों के पास जॉब कार्ड नहीं है जिनके पास है तो उन्हें कोई काम नहीं मिलता है. गुरबत की इस जिंदगी में कुदरत ने भी उनके साथ खूब मजाक किया है. गरीबी और कुपोषण के कारण इस समुदाय के बच्चे विकलांगता के भी शिकार हैं. सरकारी और गैर सरकारी सर्वे के अनुसार इलाके के पीने के पानी में अत्याधिक मात्रा में आर्गेनिक का मौजूद होना इसका प्रमुख कारण है.
राज्य सरकार ने 2008 में बिहार महादलित विकास मिशन के गठन के साथ ही उनके उत्थान के लिए 16 स्कीमों का भी ऐलान किया है. जिसमें उन्हें स्थाई घर दिलाने वाला हाउस साइट स्कीम भी शामिल है इसके तहत हर परिवार को तीन डिसीमल जमीन उपलब्ध कराना शामिल है. इसके अलावा स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार पर भी खास जोर दिया गया है. इन योजनाओं के प्रचार और प्रसार के लिए प्रिंट तथा इलेक्ट्रॉनिक दोनों ही माध्यमों का जोर-शोर से सहारा लिया जा रहा है. लेकिन मंसारा मुसहर के लोग अब भी इस योजना की बांट जोह रहे हैं.

सौजन्यः चरखा

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