Wednesday, March 30, 2011

कितना उचित है 'दलित ईसाई' को आरक्षण का लाभ

मार्च के दूसरे हफ्ते में मुंबई स्थित एक ईसाई संगठन कैथोलिक सेक्युलर फोरम (सीएसएफ) ने प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह से मुलाकात कर अनुसूचित जाति को मिलने वाला लाभ दलित ईसाईयों और मुसलमानों को भी देने की मांग की है. इस प्रतिनिधिमंडल में दिल्ली के आर्कबिशप विंसेंट कोनसिसानो, न्यायाधीश मिशेल सैदाना, सीएसएफ महासचिव जोसेफ डियाज और ट्रूथ सीकर्स इंटरनेशनल के अध्यक्ष सुनील सरदार शामिल थे. खबर है कि प्रधानमंत्री ने प्रतिनिधिमंडल से कहा कि इस बारे में गंभीरता से विचार किया जा रहा है.

प्रधानमंत्री के साथ ईसाई संगठन की इस बैठक और उसके बाद प्रधानमंत्री की प्रतिक्रिया ने कई सवाल उठा दिए हैं. दलित समुदाय को अपने आरक्षण के बंटवारे का डर सताने लगा है. असल में ईसाई संगठन सरकार को ब्लैकमेल करने की नीति अपना रहा है. प्रधानमंत्री से मुलाकात में आर्कबिशप विंसेंट का कहना था कि दलित ईसाईयों और मुसलमानों को अनुसूचति जाति का दर्जा दिए जाने पर तुरंत काम करने की आवश्यकता है. इसे लेकर दुविधा की स्थिति में होने से अल्पसंख्यकों में नकारात्मक संदेश जा रहा है. कांग्रेस पार्टी शुरू से ही अल्पसंख्यकों की राजनीति करती रहती है. ऐसे में मुसलमान हो या फिर ईसाई, दोनों उसके लिए ठोस वोट बैंक हैं. कुछ राज्यों में इस वोट बैंक के अपने से अलग होने के बाद कांग्रेस पार्टी इसे साधने की कोशिश में ईसाई संगठन की मांग को अमलीजामा पहना सकती है. कांग्रेस की सरकार पहले भी इस संबंध में अपनी बात कहती रही है. पहले हुई सुनवाई में केंद्र ने कहा था कि आयोग की उस रिपोर्ट का अध्ययन किया जाएगा, जिसने आरक्षण का लाभ देने के लिए दलित ईसाइयों को अनुसूचित जाति का दर्जा दिए जाने पर विचार किया था. केंद्र ने कहा था कि अपनी राय देने के पूर्व वह राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग की रिपोर्ट का अध्ययन करेगा.

इधर, इस पूरे मामले में दलित वर्ग को अब अपने आरक्षण में सेंधमारी की चिंता सताने लगी है. दलित होने के दाग से पीछा छुड़ाने की कोशिश में धर्म परिवर्तन करने वाले लोग अब वापस आकर दलितों के हक को छिनना चाहते हैं. कथित तौर पर सामाजिक रूप से संपन्न होने के बाद अब ये लोग आरक्षण के जरिए आर्थिक संपन्नता को पाने की जुगत में जुट गए हैं, जिस पर वास्तव में सिर्फ दलित समुदाय का हक है, जो तमाम सामाजिक उपेक्षाओं के बावजूद भी धर्म परिवर्तन करने की बजाए उससे लड़ता रहा. बिना किसी विदेशी बैसाखी के सहारे के उसने अपने बूते शिक्षा हासिल की और कहीं खुद के बूते तो कहीं आरक्षण के माध्यम से नौकरी हासिल कर अपनी स्थिति को लगातार सुधारा और अपनी प्रतिभा और योग्यता को साबित किया है. वास्तव में आरक्षण पर दलित समाज का हक है, जिस पर काफी पहले से ही ईसाई धर्म अपना कर भगोड़ा साबित हो चुके लोगों की नजर पड़ने लगी थी.

यह मामला अदालत में भी है. तमाम पक्षों ने इसे अदालत में उठाया हैं. इस संबंध में आई कई याचिकाओं में हिंदू धर्म से अन्य पंथों में धर्मांतरण करने वाले दलितों को आरक्षण का लाभ दिए जाने के कदम का विरोध किया गया है. जनवरी में उच्चतम न्यायालय आरक्षण का लाभ मुहैया कराने के लिए दलित ईसाइयों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने के मुद्दे को ‘संवदेनशील और महत्वपूर्ण’ करार दे चुकी है. शीर्ष न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने खुद जरूरत पड़ने पर इस मामले पर विचार के लिए मामले को बड़ी पीठ को सौंपने की बात भी कही थी. साथ ही इस मुद्दे को संवेदनशील बताया था. अब तक इस मुद्दे पर अदालत की भूमिका काफी सराहनीय और गंभीर रही है. अदालत ने धर्म परिवर्तन के कारण और स्थिति पर गौर करने पर भी खासा जोर दिया है. अदालत ने यह भी कहा है कि इस मुद्दे को देखते हुए जाति के अर्थ को उचित तरीके से समझने की जरूरत है.

अदालत का यह कहना अपने आप में बिल्कुल सही है. अगर हम धर्म परिवर्तन के सिद्धांत को समझने की कोशिश करें तो आरक्षण में हिस्सेदारी का दावा कर रहे लोगों की हकीकत खुद ब खुद उजागर हो जाएगी. असल में ईसाई धर्म और इस्लाम में जाति की कोई अवधारणा नहीं है. हालांकि भारतीय समाज में इस्लाम इससे अछूता नहीं है, लेकिन सार्वजनिक रूप से वह जाति की अवधारणा का विरोध करता है और मुसलमान को एक बताता है. ईसाई धर्म तो जाति के सिद्धांत से बिल्कुल अछूता है. ऐसे में धर्म परिवर्तन कर ईसाई बन चुके लोगों द्वारा खुद को दलित बताना कई सवाल खड़े करता है. जनवरी में इस मामले में हुई सुनवाई में केरल के एक जनजातीय समुदाय की ओर से पेश वरिष्ठ वकील पिंकी आनंद ने समुदाय की ओर से आरक्षण का विरोध किया था. पिंकी का कहना था कि ईसाई धर्म में जाति की कोई अवधारणा नहीं है. ऐसे में साफ सवाल उठता है कि जब ईसाई धर्म में जाति की कोई अवधारणा ही नहीं है तो फिर इस धर्म को अपना चुका कोई व्यक्ति खुद को दलित कैसे कह सकता है. असल में यह दोमुही बात है और सारा बखेड़ा आरक्षण लेने का है.

1 comment:

  1. सही कहा है इन इस्लामी और ईसाई यो नही मिलना चाहिए जो मीले हम भारतीय धर्मो को ही मीले. भगाओ इन्हे यहासे हमारे धर्म मे तो जाती है नही कहनेवालों को बिल्कुल नही देना चाहिए.

    हम भारतीय धर्म के लोगो तक ही ठीक है. अगर चहिए तो अपना लो हिन्दू धर्म.

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