जाने-माने पंजाबी गीतकार के रूप में युवाओं के बीच चर्चित हो रहे रवि जाकू पंजाब के मूलनिवासी हैं. रवि इन दिनों यूनान (ग्रीस) में हैं, जहां वह एक होटल में नौकरी कर रहे हैं. लेकिन इसके साथ-साथ जाकू रविदास जाति के गौरवशाली विकास की परिकल्पना को भी साकार करने में जुटे हैं. इसके लिए वह अपने लिखे गाने के माध्यम से दलित समाज के युवाओं को उनके गौरवशाली इतिहास की जानकारी दे रहे हैं और उनमें जोश भर रहे हैं.
जाकू का जन्म 23 जून 1976 को गांव कटपलोन, फिल्लौर पंजाब में एक दलित परिवार मे हुआ था. ज्ञान चंद और गुरुदेव कौर की संतान जाकू दो भाई और एक बहन में सबसे छोटे हैं. पिछले दिनों जाकू से स्वतंत्र लेखक ‘केपी मौर्य’ ने बातचीत की. मेल और फेसबुक के जरिए हुए बातचीत में जाकू ने अपने उद्देश्य और सपने के बारे में बताया.
जाकू का उद्देश्य दलित समाज की गरिमा को स्थापित करना है. और वह आने वाले दो सालों में यह कर दिखाने का दावा भी कर रहे हैं. दलित युवाओं में जोश भरने और उन्हें अपने गौरवशाली इतिहास की जानकारी देने के लिए उन्होंने नायाब तरीका ढ़ूंढ निकाला है. वह अपने लिखे गानों के जरिए यह काम कर रहे हैं. अब तक उनके दो एलबम भी रिलीज हो चुके हैं. पहला ‘टेक ओवर द वर्ल्ड’ औऱ दूसरा ‘फाइटर चमार’ है. दोनो एलबम पंजाबी में है और इनकी तकरीबन 20 से 25 हजार प्रतियां बिक चुकी है. जल्दी ही उनका तीसरा एलबम आने वाला है. एक विशेष जाति के ऊपर गाने लिखने के बारे में पूछने पर जाकू कहते हैं, ‘मैं अपने गानों के माध्यम से दलित समाज के युवाओं में जोश भरना चाहता हूं.’ वहीं, सपने के बारे में पूछने पर वो कहते हैं ‘मेरा सपना भारत को 'बेगम पुर' बनाने का है. जहां कोई ‘गम’ न हो. संत रविदास ने यह सपना बहुत पहले देखा था. उनकी चाहत थी कि सभी का सम्मान हो, सभी को इज्जत से रोटी मिले और हरेक बच्चा स्कूल जाए. सभी लोगों में प्यार हो और हर जाति को बराबर का सम्मान मिले. हम सभी को संत रविदास के सपने को पूरा करना चाहिए.’ जाकू को पंजाब में यह खुशहाली थोड़ी-बहुत दिख भी रही है. कहते हैं, ‘अब यहां जागृति हो गई है. सभी अच्छा काम कर रहे हैं. पंजाब के बहुत से दलित विदेशों में बस गए हैं. सभी के पास पैसा है और अच्छे मकान हैं. 5-10 साल पहले लोग हमें हमारी जाति के नाम से पुकारते थे तो अच्छा नहीं लगता था. अब कोई हमें हमारी जाति के नाम से पुकारता है तो खुशी होती है. हमें हमारी जाति पर गर्व है. मेरे गानों में भी यही बातें हैं. अब हम ईंट का जवाब पत्थर से देना जानते हैं.’
हालांकि रवि के आगे बढ़ने की कहानी बहुत आसान नहीं थी और एलबम ऐसे ही नहीं निकल गया. अपनी पत्नी और पूरे परिवार को छोड़कर रवि को पैसे के लिए 2001 में पंजाब छोड़कर यूनान जाना पड़ा. हालांकि भविष्य में वो फिर से भारत आना चाहते हैं. वो यूनान में 40-45 हजार दलितों के होने की जानकारी भी देते हैं. मीडिया के बारे में बात कहने पर जाकू अन्य देशों में दलित मीडिया का उदारहण देते हैं और भारत में भी इसकी जरूरत बताते हैं. जाकू का कहना है कि भारत में भी दलित समाज को अपने मीडिया माध्यम की बहुत जरूरत है. इसके माध्यम से हमारी बात सभी दलितों तक आसानी से पहुंच सकती है. अभी इंग्लैंड से ‘कांशी रेडिया’ का प्रसारण हो रहा है. बहुत जल्दी ही टीवी चैनल भी शुरू हो जाएगा, जिसका नाम ‘बेगमपुरा टीवी’ है. हम चाहते हैं कि ऐसा ही भारत में भी हो, ताकि लोगों में और तेजी के साथ जागृति आ सके. दलित समाज का समाचार पत्र भी होना चाहिए. लेकिन टीवी चैनल होने से बहुत जल्दी लोगों तक पहुंचा जा सकता है. इसलिए दलितों का अपना टीवी चैनल बहुत जरूरी है. जाकू जिस पंजाब से ताल्लुक रखते हैं, वहां की सांस्कृति विरासत भी काफी मजबूत रही है. दलित समाज के अन्य कलाकारों के बारे में पूछने पर जाकू का बताते हैं कि पंजाब के बहुत से दलित कलाकार फिल्मी दुनिया से जुड़े हुए हैं. जाने-माने सूफी गायक हंसराज हंस, मास्टर सलीम, सरदूल सिकंदर ऐसे ही प्रचलित नाम हैं.
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