छत्तीसगढ़ में दलित समाज को सरकारी योजनाओं और आरक्षण का लाभ न देने की साजिश चल रही है. प्रदेश सरकार द्वारा जाति प्रमाण पत्र जारी करने को लेकर बनाए कठिन शर्तों के कारण दलित समाज का बड़ा तबका प्रमाण पत्र नहीं बनवा पा रहा है. इन्हीं दिक्कतों को सामने रखते हुए पिछले दिनों दलित मूवमेंट एसोसिएशन के एक प्रतिनिधिमंडल ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह से मुलाकात की और प्रदेश में दलित जातियों को आने वाली दिक्कतों से अवगत कराया. प्रदेश में फिलहाल सबसे बड़ी समस्या दलित जातियों का प्रमाण पत्र बनाने में आने वाली परेशानी को लेकर है. प्रतिनिधिमंडल ने इस बारे में भी मुख्यमंत्री को अवगत कराया.
फिलहाल प्रदेश में जाति प्रमाण पत्र बनाने के लिए आवेदक से 50-60 साल पुराना भूमि रिकार्ड मांगा जाता है. जबकि हकीकत यह है कि पांच दशक पहले ज्यादातर दलित समाज अनपढ़ और भूमिहीन था. उनके पास कुछ जमीने थी भी तो उस समय कागजों का चलन इतना अधिक नहीं था. इस कारण दलित समाज के लोग इतना पुराना रिकार्ड पेश नहीं कर पा रहे हैं. ऐसे में प्रशासन द्वारा उनका जाति प्रमाण पत्र नहीं बनाया जा रहा है. इस कारण उन्हें आरक्षण की मूलभूत सुविधा नहीं मिल पा रही है. कुछ अति दलित जातियों को तो परेशानी का सामना ज्यादा करना पर रहा है. दूसरी समस्या यह भी है कि जो लोग सरकारी मानक को पूरा कर जाति प्रमाण पत्र बनवाते भी हैं तो एक ही उपजाति को कई नामों से जाति प्रमाण पत्र दिए जाते हैं उदाहरण के लिए डोमार जातियों का जाति प्रमाण पत्र कई नामों से जारी किया जाता है. सरकार द्वारा जारी जाति प्रमाण पत्रों में डोमार जाति के लिए डोमार, डोम, महार, भंगी, मेहतर, वाल्मीकि, मेहतर, खटिक और देवार आदि नाम से प्रमाण पत्र जारी किया जाता है. प्रदेश में दलितों में इसी उपजाति के दलित ज्यादा संख्या में हैं. मुख्यमंत्री से मुलाकात के दौरान प्रतिनिधिमंडल ने इस समस्या को भी उठाया और विभिन्न नामों की बजाए डोमार नाम से ही प्रमाण पत्र देने की मांग की. इसके अलावा प्रतिनिधिमंडल ने एसोसिएशन के लिए कार्यालय भवन की मांग भी की. इन मांगों के संबंध में उन्होंने मुख्यमंत्री को एक ज्ञापन सौंपा. प्रतिनिधिमंडल में शामिल सदस्यों में ललित कुंडे, मोतीलाल, धर्मकार, कैलाश खरे, हरीश कुंडे एवं संजीव आदि शामिल थे.
No comments:
Post a Comment